जैव प्रक्रियाएं // Life Processes (Part -03) जंतुओं में पोषण
जंतुओं में पोषण (Nutrition in Animals)
जंतु अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर रहते हैं। यह अपना भोजन पौधों से या दूसरे जंतुओं से प्राप्त करते हैं। जंतु अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते हैं। यह दूसरों पर निर्भर रहते हैं, इसलिए जंतु परपोषी होते हैं।
सामान्य रूप से देखा जाए तो जंतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना भोजन पौधों से ही प्राप्त करते हैं। भोजन के आधार पर जंतुओं को 3 वर्गों में बांटा गया है-
(i) शाकाहारी (Herbivores)
(ii) मांसाहारी (Carnivores)
(iii) सर्वाहारी (Omnivores)
(i) शाकाहारी (Herbivores) - जो जंतु अपने भोजन को केवल पौधों से प्राप्त करते हैं उन्हें शाकाहारी कहते हैं। ये जंतु केवल पौधों को ही खाते हैं।
जैसे- बकरी, गाय, भैंस, हिरण, हाथी, खरगोश आदि।
(ii) मांसाहारी (Carnivores) - जो जंतु अपने भोजन के रूप में केवल दूसरे जंतुओं को ही कहते हैं उन्हें मांसाहारी जंतु कहते हैं।
जैसे- शेर, बाघ, गिद्ध, सांप आदि।
(iii) सर्वाहारी (Omnivores) - जो जंतु अपने भोजन के रूप में जंतु अथवा पौधों दोनो को ही खा लेते हैं उन्हें सर्वाहारी जंतु कहते हैं।
जैसे- मनुष्य, कुत्ता, भालू, कौवा आदि।
जंतुओं में पोषण की प्रक्रिया के विभिन्न चरण--
1- अंतर्ग्रहण- शरीर के अंदर भोजन ग्रहण करने की प्रक्रिया अंतर्ग्रहण कहलाती है।
2- पाचन- इसमें बड़े अविलेय टुकड़ों का भोजन छोटे विलेय टुकड़ो में टूट जाता है।
3- अवशोषण- वह प्रक्रिया जिसमें पचा हुआ भोजन आँत की दीवारों से रुधिर में पहुंचता है, अवशोषण कहलाती है।
4- स्वांगीकरण- अवशोषित भोजन को शरीर की कोशिकाओं द्वारा उपयोग करना स्वांगीकरण कहलाता है।
5- बहिःक्षेपण- अपचित भोजन को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया बहिःक्षेपण कहलाती है।
अमीबा में पोषण ( Nutrition in Amoeba)
अमीबा एककोशिकीय प्राणी है, इसमें सारी क्रियाएं एक ही कोशिका में सम्पन्न होती हैं। इसके शरीर का आकार अनियमित होता है। जब यह किसी भोजन के संपर्क में आता है तो इसकी कोशिका से उंगली के समान संरचना निकलती है,जिन्हें कूटपाद कहते हैं । यह भोजन को चारों और से घेर लेती है और खाद्य रिक्तिका बना लेती है। इसके पश्चात इस खाद्य रिक्तिका में एंजाइम का निक्षेपण होता है और भोजन का पाचन होता है। पाचित भोजन का अवशोषण इसी कोशिका में कर लिया जाता है, और अपचित भोजन को इसी खाद्य रिक्तिका द्वारा कोशिका से बाहर छोड़ दिया जाता है।
मनुष्य में पोषण (Nutrition in Humans)
मनुष्य में पोषण मानव पाचन तंत्र के द्वारा होता है। मनुष्य का पाचन तंत्र आहार नाल और उससे संबंधित ग्रंथियों का बना होता है। मानव पाचन तंत्र में विभिन्न अंग होते हैं जैसे- मुख, ग्रासनली, अमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, । इसके अलावा कुछ ग्रंथियां होती हैं जैसे- अमाशय, लार ग्रन्थि, यकृत।
मनुष्य में भोजन का अंतर्ग्रहण मुख के द्वारा किया जाता है। और यहीं से भोजन का पाचन भी शुरू हो जाता है। मुख में हमारे दांत भोजन को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ने का कार्य करते हैं। मुख में उपस्थित लार ग्रंथियों से निकलने वाली लार में एमाइलेस एंजाइम हमारी जिव्हा के द्वारा मिलाया जाता है। यह एंजाइम भोजन में उपस्थित स्टार्च को शर्करा में तोड़ देता है। इसके पश्चात यह लार मिला भोजन ग्रासनली से होता हुआ अमाशय में पहुंचता है। अमाशय की भित्ति में उपस्थित ग्रंथियां जठर रस स्रावित करती हैं। जिसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, पेप्सिन एंजाइम, और श्लेष्मा होती है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के कारण अमाशय में भोजन अम्लीय माध्यम में आ जाता है। अम्लीय माध्यम में पेप्सिन भोजन में उपस्थित प्रोटीन का पाचन शुरू कर देता है। श्लेष्मा अमाशय की दीवार पर एक आवरण बना लेता है, जिससे अम्लीय माध्यम से अमाशय की दीवारों की रक्षा हो सके।
अमाशय में आंशिक रूप से पचा हुआ भोजन इसके बाद छोटी आंत में प्रवेश करता है। छोटी आंत आहार नाल का सबसे लंबा भाग है जिसकी लंबाई 5 से 6.5 मीटर तक हो सकती है। यहां यकृत से पित्त रस भोजन में मिलता है जो अम्लीय माध्यम के भोजन को क्षारीय बनाता है तथा भोजन में उपस्थित वसा का इमल्सीकरण करता है। अग्नाशय से एमाइलेस , लाइपेस, ओर ट्रिप्सिन एंजाइम भोजन में मिलाएं जाते हैं।
पाचन के बाद भोजन अपने मूल कणों में टूट जाता है जिसे आंत की दीवारें अवशोषित करके हमारे रक्त में भेज देती हैं। रक्त की सहायता से ये भोजन शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुंचा दिया जाता है।
कोशिकाओं में इस भोजन के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है जो विभिन्न क्रियाओ के संपादन में प्रयुक्त होती है।
छोटी आंत से बचा भोजन अब बड़ी आंत में आता है, यहां इस अपचित भोजन में से जल की मात्रा अवशोषित कर ली जाती है, और शेष अपचित भोजन को गुदा के द्वारा बाहर कर दिया जाता है।
इस प्रकार मनुष्य में भोजन का पाचन होता है।
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